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मंकी फीवर का खतरा: कर्नाटक में बढ़ते मामले, जानिए इसके लक्षण, बचाव और संक्रमण के तरीके

मंकी फीवर: कर्नाटक में बढ़ते मामलों से चिंता, जानें लक्षण, इलाज और बचाव के उपाय

कर्नाटक में मंकी फीवर के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं, जिससे सरकार ने सतर्कता बढ़ा दी है। पिछले महीने 64 नए मामले सामने आए, जिनमें दो लोगों की मौत हो गई। बढ़ते संक्रमण को देखते हुए सरकार ने मुफ्त इलाज की घोषणा की है और लोगों को सावधानी बरतने की सलाह दी है।

किन इलाकों में ज्यादा खतरा?

मंकी फीवर उन क्षेत्रों में अधिक फैलता है जहां बंदरों की संख्या अधिक होती है। कर्नाटक के अलावा महाराष्ट्र और गोवा में भी इसके कई मामले दर्ज किए गए हैं। आमतौर पर जनवरी से मई के बीच इस बीमारी के मामले बढ़ जाते हैं, जिससे कुछ क्षेत्रों में यह महामारी का रूप ले सकती है।

मंकी फीवर के आंकड़े

भारत में हर साल मंकी फीवर के 400-500 मामले सामने आते हैं, जिनमें से लगभग 25 लोगों की मृत्यु हो जाती है। कर्नाटक सरकार के अनुसार, 2024 में राज्य में 303 मामले दर्ज हुए, जिनमें से 14 लोगों की मौत हुई। यह बीमारी पश्चिमी घाट के आसपास के क्षेत्रों में अधिक पाई जाती है।

मंकी फीवर क्या है?

मंकी फीवर, जिसे क्यासानूर फॉरेस्ट डिजीज (KFD) भी कहा जाता है, एक वायरल संक्रमण है जो संक्रमित टिक्स (किलनी) के काटने से फैलता है। यह मुख्य रूप से जंगली बंदरों में पाया जाता है, लेकिन संक्रमित टिक्स के काटने से इंसानों में भी फैल सकता है।

मंकी फीवर के लक्षण

मंकी फीवर का इलाज

इस बीमारी के लिए कोई विशेष एंटीवायरल दवा नहीं है। डॉक्टर लक्षणों को नियंत्रित करने के लिए बुखार और दर्द कम करने वाली दवाएं देते हैं। गंभीर मामलों में मरीजों को अस्पताल में भर्ती कर IV फ्लूइड और अन्य चिकित्सा सहायता दी जाती है।

कैसे करें बचाव?

क्या मंकी फीवर इंसानों से इंसानों में फैलता है?

नहीं, यह बीमारी एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में नहीं फैलती। यह केवल संक्रमित टिक्स के काटने से ही फैलती है।

क्या मंकी फीवर से मौत हो सकती है?

अगर समय पर इलाज न मिले तो इसकी मृत्यु दर 3-10% तक हो सकती है। इसलिए जल्द पहचान और इलाज बेहद जरूरी है।

क्या मंकी फीवर के लिए वैक्सीन उपलब्ध है?

फिलहाल इसकी कोई लाइसेंसी वैक्सीन नहीं है, लेकिन भारत में इसका टीका विकसित करने पर काम हो रहा है। उम्मीद है कि अगले साल तक वैक्सीन उपलब्ध हो सकती है।

मंकी फीवर का पहला मामला कब और कहां मिला था?

इसका पहला मामला 1957 में कर्नाटक के क्यासानूर जंगल में एक संक्रमित बंदर में पाया गया था। तभी से इसे क्यासानूर फॉरेस्ट डिजीज कहा जाता है।

निष्कर्ष

मंकी फीवर एक गंभीर बीमारी है, लेकिन सावधानी बरतकर इससे बचा जा सकता है। जंगल में जाने से पहले सुरक्षा उपाय अपनाएं और किसी भी संदिग्ध लक्षण पर तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।

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