क्या होता अगर शास्त्रीजी महाराज का अस्तित्व न होता?

क्या आप “रामायण” की कल्पना श्रीराम के बिना कर सकते हैं?????
क्या आप “श्रीमद्भगवद्गीता” की कल्पना श्री कृष्ण के बिना कर सकते हैं?????
मुझे लगता है “नहीं, यह संभव नहीं होगा।”

इसी तरह, स्वतंत्र भारत के गुरुकुलों की कल्पना शास्त्रीजी महाराज के बिना नहीं की जा सकती। उनका गुरुकुल के प्रति सेवा और दृष्टिकोण अद्वितीय था, क्योंकि उन्होंने भविष्य को देखा था और समझा था कि कैसे मानवता का पतन होगा और कैसे हर व्यक्ति की अंधी प्रवृत्तियाँ उसकी उज्जवलता से अधिक होंगी। उन्हें यह एहसास था कि व्यक्ति अच्छे कार्यों की बजाय पापपूर्ण कार्यों की ओर आकर्षित होगा। इसलिए, उन्होंने अपना जीवन गुरुकुल को समर्पित किया।

गुरुकुल की स्थापना से पहले भी उनका मानवता के प्रति समर्पण अप्रतिम था, लेकिन उसके बाद उन्होंने समाज और मानवता को ऐसा कर्ज दिया कि हम और हमारी आने वाली पीढ़ियाँ भी उसे चुकता नहीं कर सकते।

वह धार्मिक जीवन के वास्तविक प्रतीक थे, जैसा कि उनके नाम “धर्मजीवन दास” से स्पष्ट है। इसके अलावा, वह गुरुकुल के अन्य संतों और छात्रों के प्रति भी बेहद सजग थे और कभी भी उन्हें धर्म में कमी नहीं होने दी, बल्कि उन्हें हमारे पवित्र शास्त्रों के अनुसार अनुष्ठान करने के लिए प्रेरित किया।

गुरुकुल का जन्म

गुरुकुल का विचार उनके मन में तब आया जब वह हिमालय में 53 दिनों की लंबी यात्रा पर बडरीनाथ और केदारनाथ जा रहे थे। इस यात्रा के दौरान, उन्होंने रुद्रप्रयाग में एक साधु को रघुवंश के श्लोक बच्चों को पढ़ाते देखा। उसी पल, उन्होंने ठाना कि वह एक ऐसा गुरुकुल बनाएंगे, जो आने वाली पीढ़ी में भारतीय संस्कृति के मूल्यों को शिक्षा के माध्यम से रफ्तार दे।

शास्त्रीजी महाराज गुजरात लौटे और उन्होंने प्राचीन गुरुकुल व्यवस्था को फिर से जीवित करने का संकल्प लिया। उनका जीवन मंत्र था – “प्रवर्तनीया सद्विद्या भुवि यत्सुकृतं महत्।”

शास्त्रीजी महाराज का अस्तित्व न होता तो क्या होता?

अगर शास्त्रीजी महाराज का अस्तित्व न होता, तो यह 1,50,000+ शिक्षित, संस्कारी और सुसंस्कारित छात्र कभी नहीं होते। वे शिक्षित होते, लेकिन संस्कार और सुसंस्कार से युक्त नहीं होते।

विद्या और सद्विद्या

अगर शास्त्रीजी महाराज न होते, तो कोई भी संस्थान हमें न तो एक सुसंस्कृत शिक्षा देता, न ही समाज के प्रति जिम्मेदारी का अहसास कराता। उन्हें विद्या (शिक्षा) मिलती, लेकिन सद्विद्या (आचरण, संस्कार) नहीं मिलती।

ब्राह्मविद्या

गुरुकुल में बच्चों की आत्मिक और मानसिक विकास के लिए रोजाना पूजा, योग, सांस्कृतिक शिक्षा और भारतीय संस्कृति का ज्ञान शामिल था। ये सारे तत्व बिना शास्त्रीजी महाराज के संभव नहीं होते।

अच्छे माता-पिता की परिभाषा

अच्छे माता-पिता होने का मतलब केवल अपनी संतान को अच्छे संस्कार देना नहीं है, बल्कि बच्चों को यह समझाना भी है कि जीवन के असली मूल्यों क्या हैं। गुरुकुल ने बच्चों को संस्कार, ज्ञान और भक्ति से परिपूर्ण किया, जिससे भविष्य में वे समाज में आदर्श नागरिक बन सकें।

गुरुकुल के बिना क्या होता?

आज के बच्चों में जो खतरनाक आदतें, जैसे नशीली दवाओं का सेवन, शराब पीना और अपराध करना बढ़ रही हैं, वे सब गुरुकुल की शिक्षा के बिना शास्त्रीजी महाराज के छात्रों के जीवन का हिस्सा हो सकती थीं। अगर वे गुरुकुल में न पढ़े होते, तो शायद उन्हें इन सब गलत आदतों से नहीं बचाया जा सकता।

गुरुकुल किसके लिए है?

शास्त्रीजी महाराज ने गुरुकुल की स्थापना केवल बच्चों को पढ़ाने के लिए नहीं की थी। उनका उद्देश्य था कि बच्चों को धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक जिम्मेदारी का एहसास कराएं, ताकि वे भविष्य में एक अच्छे नागरिक बन सकें। उन्होंने इसे एक “मनुष्य बनाने की फैक्ट्री” के रूप में स्थापित किया।

इस प्रकार, शास्त्रीजी महाराज का योगदान अनमोल था। उनका अस्तित्व न होता तो समाज को वह मूल्य, संस्कार और नैतिक शिक्षा कभी नहीं मिल पाती जो हमें आज गुरुकुल के माध्यम से मिल रही है।

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