स्कूल से हटाया गया शहीद अब्दुल हमीद का नाम, विवाद के बाद फिर लिखा गया
उत्तर प्रदेश के गाजीपुर जिले के धामूपुर गांव में स्थित एक प्राइमरी स्कूल में शहीद अब्दुल हमीद के नाम को लेकर विवाद हो गया। मामले ने तूल पकड़ा, जिसके बाद जिले के बेसिक शिक्षा अधिकारी (BSA) को स्कूल की पेंटिंग दोबारा करवानी पड़ी।
नाम बदलने पर उठा विवाद
यह स्कूल 1965 के भारत-पाक युद्ध में वीरता का प्रदर्शन करते हुए परमवीर चक्र से सम्मानित शहीद अब्दुल हमीद के नाम पर था। हाल ही में स्कूल की नई पेंटिंग कराई गई, लेकिन गेट पर लिखे शहीद अब्दुल हमीद के नाम की जगह ‘PM श्री कंपोजिट स्कूल’ लिख दिया गया। इस बदलाव के बाद अब्दुल हमीद के परिवार, स्थानीय ग्रामीणों और सोशल मीडिया पर लोगों ने कड़ा विरोध दर्ज कराया।
शहीद के परिवार का बयान
शहीद अब्दुल हमीद के पोते जमील अहमद ने कहा, “पहले गेट पर ‘शहीद अब्दुल हमीद विद्यालय’ लिखा था। लेकिन नई पेंटिंग में इसे बदलकर ‘PM श्री कंपोजिट स्कूल’ कर दिया गया। हमने इस बदलाव का विरोध किया, लेकिन स्कूल के प्रधानाध्यापक ने इसे बेसिक शिक्षा अधिकारी से संपर्क करने का मामला बताया।”
लोगों के विरोध के बाद नाम बहाल
इस विवाद के बाद बेसिक शिक्षा अधिकारी हेमंत राव ने स्थिति को स्पष्ट करते हुए कहा कि शहीद अब्दुल हमीद का नाम फिर से गेट पर लिखा जाएगा। उन्होंने यह भी बताया कि स्कूल के अंदर की दीवारों पर अब्दुल हमीद का नाम पहले से ही मौजूद था।
किताबों में दर्ज है वीर अब्दुल हमीद का अध्याय
नेशनल एजुकेशन पॉलिसी (NEP 2020) के तहत कक्षा 6 की NCERT पुस्तकों में “वीर अब्दुल हमीद” नाम से एक पूरा अध्याय शामिल किया गया है।
1965 के युद्ध में वीरता की कहानी
1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में अब्दुल हमीद ने पाकिस्तान के शक्तिशाली पैटन टैंकों का सामना किया। भारतीय सेना के पास सीमित संसाधन और हथियार थे, लेकिन अब्दुल हमीद ने अपनी गन-माउंटेड जीप से पैटन टैंकों को ध्वस्त कर दिया। उनकी इस बहादुरी ने युद्ध का रुख बदल दिया और असल उताड़ गांव “पैटन टैंकों की कब्रगाह” बन गया।
इस वीरता के दौरान अब्दुल हमीद ने दुश्मन के टैंकों को नष्ट करते हुए अपने प्राणों की आहुति दी। 10 सितंबर 1965 को उनकी शहादत की आधिकारिक घोषणा हुई। उनकी इस वीरता ने न केवल पाकिस्तान को करारी शिकस्त दी, बल्कि अमेरिका को पैटन टैंकों के डिजाइन पर पुनर्विचार करने पर मजबूर कर दिया।
निष्कर्ष
यह घटना न केवल शहीद अब्दुल हमीद के बलिदान की याद दिलाती है, बल्कि यह भी बताती है कि हमारे वीरों का सम्मान बनाए रखना हमारी जिम्मेदारी है। शहीद अब्दुल हमीद जैसे नायकों का नाम न केवल इतिहास में, बल्कि हमारे समाज और आने वाली पीढ़ियों के दिलों में अमर रहना चाहिए।