मूवी रिव्यू – “सुपरबॉयज ऑफ मालेगांव”: जुनून, दोस्ती और सिनेमा के सपनों की प्रेरक दास्तान

फोटो व्हाट्सएप्प AI से लिया गया है

मूवी रिव्यू – “सुपरबॉयज ऑफ मालेगांव”: जुनून, संघर्ष और दोस्ती की अनकही दास्तान

निर्देशक रीमा कागती की फिल्म “सुपरबॉयज ऑफ मालेगांव” 28 फरवरी को सिनेमाघरों में रिलीज होने वाली है। यह फिल्म नासिर शेख की असल जिंदगी पर आधारित है, जो एक जुनूनी और मेहनती इंसान थे। उन्होंने अपनी सृजनात्मक सोच और अथक मेहनत से मालेगांव के लोगों के लिए सिनेमा को एक नई पहचान दी। यह फिल्म उन लोगों के लिए एक प्रेरणादायक गाथा है, जो सीमित संसाधनों के बावजूद अपने सपनों को साकार करने का जज़्बा रखते हैं

प्रोडक्शन और स्टार कास्ट

फिल्म को रीमा कागती, जोया अख्तर, फरहान अख्तर और रितेश सिधवानी ने प्रोड्यूस किया है। इसमें आदर्श गौरव, विनीत कुमार सिंह, शशांक अरोड़ा, अनुज सिंह दुहान, साकिब अयूब, पल्लव सिंह और मंजरी जैसे दमदार कलाकार नजर आएंगे। फिल्म की लंबाई 2 घंटे 7 मिनट है और इसे दैनिक भास्कर ने 4/5 स्टार दिए हैं।


कहानी: जुनून और सपनों की लड़ाई

फिल्म की कहानी मालेगांव के एक युवा फिल्ममेकर नासिर (आदर्श गौरव) के इर्द-गिर्द घूमती है, जो अपने भाई के लोकल वीडियो पार्लर से जुड़ा है। शादी की वीडियो रिकॉर्डिंग से लेकर एडिटिंग सीखने तक, नासिर अपनी संघर्षशील यात्रा में मालेगांव की आम जनता को एंटरटेन करने के लिए स्थानीय फिल्में बनाता है।

अपने दोस्त फरोग जाफरी (विनीत कुमार सिंह), अकराम (अनुज दुहान), अलीम (पल्लव सिंह), शफीक (शशांक अरोड़ा) और इरफान (साकिब अयूब) के साथ मिलकर, नासिर ने बॉलीवुड की सुपरहिट फिल्म ‘शोले’ का स्पूफ – “मालेगांव की शोले” बनाई। फिल्म सफल रही, लेकिन सफलता के साथ दोस्ती में दरारें भी आईं।

इसके बाद, जब शफीक को लंग कैंसर हो जाता है, तो नासिर उसे एक आखिरी तोहफा देने का फैसला करता है – “सुपरमैन ऑफ मालेगांव”। यह न केवल एक फिल्म बनाने की कहानी है, बल्कि इसमें दोस्ती, संघर्ष और सपनों के लिए लड़ने का भावुक संघर्ष भी झलकता है।


एक्टिंग परफॉर्मेंस: कलाकारों की जानदार अदाकारी

  • आदर्श गौरव ने नासिर के संघर्ष और जुनून को पूरी गहराई से निभाया है।
  • विनीत कुमार सिंह ने फरोग के किरदार को प्रभावी ढंग से जीवंत किया है, खासकर उसकी भावनात्मक जटिलताओं को।
  • शशांक अरोड़ा ने शफीक के किरदार में जान डाल दी, जिससे दर्शकों को उसकी कहानी से गहरा जुड़ाव महसूस होता है।
  • बाकी कलाकारों ने भी सहज और असली परफॉर्मेंस दी है, जिससे फिल्म का हर किरदार वास्तविक लगता है।

डायरेक्शन और सिनेमैटोग्राफी

निर्देशक रीमा कागती ने मालेगांव की जमीनी सच्चाई को पर्दे पर बखूबी उतारा है।

  • वरुण ग्रोवर की लिखी स्क्रिप्ट में भावनाओं की गहराई है और यह संघर्ष करने वालों की कहानी को सम्मान देती है।
  • “राइटर ही बाप होता है” जैसे संवाद फिल्म की सशक्त कहानी को और प्रभावी बनाते हैं।
  • डीओपी स्वप्निल एस सोनावणे की सिनेमैटोग्राफी और प्रोडक्शन डिजाइनर सैली व्हाइट की कला निर्देशन ने फिल्म को असली मालेगांव के रंगों में ढाल दिया है।

संगीत और बैकग्राउंड स्कोर

  • सचिन-जिगर का संगीत फिल्म के मूड के अनुरूप है और हर सीन में भावनात्मक गहराई जोड़ता है।
  • जावेद अख्तर का गाना “बंदे” दर्शकों में जोश और प्रेरणा का संचार करता है।

फाइनल वर्डिक्ट – देखनी चाहिए या नहीं?

अगर आप संघर्ष, जुनून और दोस्ती की एक सच्ची कहानी देखना चाहते हैं, तो “सुपरबॉयज ऑफ मालेगांव” आपके लिए परफेक्ट फिल्म है।

  • रियल लाइफ इंस्पिरेशन
  • दमदार परफॉर्मेंस
  • शानदार सिनेमैटोग्राफी
  • गहरी भावनात्मक अपील

यह फिल्म उन लोगों को जरूर देखनी चाहिए, जो अपने सपनों के लिए लड़ने की हिम्मत रखते हैं और सच्ची कहानियों से प्रेरित होते हैं। रेटिंग: ⭐⭐⭐⭐ (4/5)

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