राजत्व और नेतृत्व का पाठ: ‘सिंहासन बत्तीसी’ की सीख
एक दिन राजा भोज अपने नगर से गुजरते हुए एक खेत के पास पहुंचे। वहां एक किसान जोर से चिल्लाया, “दूर रहें! आपके घोड़े मेरी फसल नष्ट कर देंगे। क्या आप गरीबों पर जरा भी दया नहीं करते?” किसान के इस व्यवहार से चकित होकर राजा भोज आगे बढ़ने लगे। लेकिन तभी वही किसान मधुर स्वर में बोला, “राजन, कहां जा रहे हैं? कृपया मेरे खेत में आएं। मैं आपके घोड़ों को पानी पिलाऊंगा और सैनिकों को भोजन कराऊंगा।”
राजा भोज इस विरोधाभासी व्यवहार से हैरान रह गए, लेकिन वे किसान को दुखी नहीं करना चाहते थे। उन्होंने उसकी बातें सुनकर पुनः खेत की ओर रुख किया। जैसे ही वे आगे बढ़े, किसान फिर चिल्लाया, “रुक जाइए! मेरे खेत को नुकसान मत पहुंचाइए। आप दुष्ट राजा हैं!” यह देखकर भोज फिर से मुड़ गए। लेकिन किसान फिर से उन्हें लौटने का आग्रह करने लगा।
राजा भोज ने गौर किया कि किसान का व्यवहार केवल तभी बदलता था जब वह एक विशेष टीले पर खड़ा होता था। उन्हें इस टीले में कुछ रहस्य प्रतीत हुआ, इसलिए उन्होंने सैनिकों को इसे खोदने का आदेश दिया। किसान ने विरोध किया, लेकिन भोज ने उसकी बात अनसुनी कर दी।
जैसे ही टीला खोदा गया, उसमें से एक सुनहरा सिंहासन निकला। भोज ने जैसे ही उस पर बैठने की कोशिश की, सिंहासन बोल उठा, “यह महान सम्राट विक्रमादित्य का सिंहासन है। यदि तुम उनके समान न्यायप्रिय, उदार और विद्वान हो, तो ही इस पर बैठ सकते हो। अन्यथा, यह तुम्हें स्वीकार नहीं करेगा।”
इसके बाद सिंहासन ने राजा भोज को बत्तीस कहानियां सुनाईं, जिनमें राजा विक्रमादित्य के आदर्श नेतृत्व, परोपकार और न्यायप्रियता की मिसालें थीं। भोज ने महसूस किया कि सच्चे राजा का कर्तव्य अपनी प्रजा की सेवा करना और निष्पक्ष न्याय देना होता है।
कहानी का गहरा अर्थ
‘सिंहासन बत्तीसी’ सिर्फ एक पौराणिक कथा नहीं, बल्कि नेतृत्व की गहरी सीख देने वाला ग्रंथ है। इस कहानी में दो महत्वपूर्ण बातें छिपी हैं:
- व्यक्ति और परिस्थिति का प्रभाव – जब किसान धरती पर खड़ा होता है, तो वह असुरक्षित और संकीर्ण मानसिकता वाला लगता है। लेकिन जब वह सिंहासन के टीले पर होता है, तो उसका व्यवहार उदार और सम्मानजनक हो जाता है। यह दिखाता है कि परिस्थितियां और मनोस्थिति व्यक्तित्व को प्रभावित करती हैं।
- सच्चा नेतृत्व गुणों से बनता है, सत्ता से नहीं – सिंहासन स्वयं निर्णय लेता है कि कौन इस पर बैठने योग्य है। यह दिखाता है कि राजा या नेता का असली मूल्य उसकी महानता, उदारता और न्यायप्रियता से तय होता है, न कि केवल उसकी सत्ता से।
नेतृत्व की सीख
आज के दौर में भी यह कहानी उतनी ही प्रासंगिक है। एक सच्चा नेता वही होता है जो अपने हित से ऊपर उठकर समाज की भलाई के लिए काम करे। जब कोई शासक अपने अधिकारों का दुरुपयोग करने लगे और सिर्फ अपनी सत्ता को बचाने में लग जाए, तो वह एक सच्चे नेता की कसौटी पर खरा नहीं उतरता।
‘सिंहासन बत्तीसी’ हमें सिखाती है कि सत्ता व्यक्ति को महान नहीं बनाती, बल्कि उसके गुण और कर्म उसे महान बनाते है