महाकुंभ: आस्था, एकता और नए भारत की ऊर्जा का महोत्सव महाकुंभ सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं था, बल्कि यह भारत की जागृत चेतना और एकता का एक विराट संगम था। जब कोई राष्ट्र अपनी पुरानी मानसिक बेड़ियों को तोड़ता है और आत्मविश्वास से भरा आगे बढ़ता है, तो दृश्य कुछ वैसा ही होता है, जैसा प्रयागराज में देखने को मिला। राम भक्ति से राष्ट्र भक्ति तक का सफर 22 जनवरी, 2024 को अयोध्या में राम मंदिर के प्राण-प्रतिष्ठा के दौरान मैंने ‘देवभक्ति से देशभक्ति’ की बात कही थी। प्रयागराज के महाकुंभ में यह भावना मूर्त रूप में दिखाई दी। लाखों संत-महात्मा, श्रद्धालु, युवा, महिलाएं, और बुजुर्ग एक साथ संगम तट पर एकजुट हुए। पूरे देश की आस्था और ऊर्जा इस आयोजन से जुड़ गई, जो भारत की सामाजिक और आध्यात्मिक शक्ति का प्रतीक बन गई। एकता और समरसता का प्रतीक संगम तीर्थराज प्रयाग के पास स्थित शृंगवेरपुर, जहां श्रीराम और निषादराज का ऐतिहासिक मिलन हुआ था, हमें समरसता और प्रेम की प्रेरणा देता है। यह वही संदेश है, जो महाकुंभ के दौरान प्रयागराज में हर श्रद्धालु ने महसूस किया—एकता और आत्मीयता का अद्भुत संगम। विश्व का सबसे बड़ा आयोजन पिछले 45 दिनों में प्रयागराज में करोड़ों लोग जुटे, बिना किसी औपचारिक निमंत्रण के। यह आधुनिक युग के लिए प्रबंधन और योजना का एक बेहतरीन उदाहरण बन गया है। पूरे विश्व में इतने बड़े पैमाने पर कोई अन्य आयोजन नहीं होता, जहां लोग केवल आस्था के बल पर स्वयं एकत्रित होते हैं। इस विराट आयोजन ने भारत की युवा पीढ़ी को भी अपनी संस्कृति से गहराई से जोड़ दिया। बड़ी संख्या में युवा महाकुंभ में पहुंचे, जिससे यह स्पष्ट हुआ कि नई पीढ़ी अपने संस्कारों और विरासत को संभालने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है। आस्था और राष्ट्रीय चेतना का महायज्ञ प्रयागराज में उमड़े जनसैलाब ने एक नया रिकॉर्ड स्थापित किया। लेकिन जो वहां नहीं पहुंच सके, उन्होंने भी इस आयोजन को अपने घरों और गांवों में भावनात्मक रूप से जिया। श्रद्धालुओं द्वारा अपने साथ ले जाई गई त्रिवेणी का पवित्र जल, पूरे देश में इस आयोजन की पवित्रता और प्रभाव को पहुंचा रहा है। 144 वर्षों बाद एक ऐतिहासिक मोड़ महाकुंभ की परंपरा भारत की राष्ट्रीय चेतना को सदियों से बल देती आई है। हर पूर्णकुंभ में ऋषि-मुनि और विद्वान समाज की दिशा तय करने के लिए विचार-मंथन करते हैं। 144 वर्षों के बाद पड़े इस महाकुंभ ने भी एक नए भारत के निर्माण का संदेश दिया है—विकसित, आत्मनिर्भर और जागरूक भारत का। महाकुंभ केवल एक धार्मिक पर्व नहीं था, यह भारत के नवजागरण का प्रतीक बन गया है। यह स्पष्ट संकेत है कि भारत अपनी विरासत पर गर्व करते हुए, आत्मविश्वास के साथ अपने उज्जवल भविष्य की ओर बढ़ रहा है।

महाकुंभ: आस्था, एकता और नए भारत की ऊर्जा का महोत्सव

महाकुंभ सिर्फ एक धार्मिक आयोजन नहीं था, बल्कि यह भारत की जागृत चेतना और एकता का एक विराट संगम था। जब कोई राष्ट्र अपनी पुरानी मानसिक बेड़ियों को तोड़ता है और आत्मविश्वास से भरा आगे बढ़ता है, तो दृश्य कुछ वैसा ही होता है, जैसा प्रयागराज में देखने को मिला।

राम भक्ति से राष्ट्र भक्ति तक का सफर

22 जनवरी, 2024 को अयोध्या में राम मंदिर के प्राण-प्रतिष्ठा के दौरान मैंने ‘देवभक्ति से देशभक्ति’ की बात कही थी। प्रयागराज के महाकुंभ में यह भावना मूर्त रूप में दिखाई दी। लाखों संत-महात्मा, श्रद्धालु, युवा, महिलाएं, और बुजुर्ग एक साथ संगम तट पर एकजुट हुए। पूरे देश की आस्था और ऊर्जा इस आयोजन से जुड़ गई, जो भारत की सामाजिक और आध्यात्मिक शक्ति का प्रतीक बन गई।

एकता और समरसता का प्रतीक संगम

तीर्थराज प्रयाग के पास स्थित शृंगवेरपुर, जहां श्रीराम और निषादराज का ऐतिहासिक मिलन हुआ था, हमें समरसता और प्रेम की प्रेरणा देता है। यह वही संदेश है, जो महाकुंभ के दौरान प्रयागराज में हर श्रद्धालु ने महसूस किया—एकता और आत्मीयता का अद्भुत संगम।

विश्व का सबसे बड़ा आयोजन

पिछले 45 दिनों में प्रयागराज में करोड़ों लोग जुटे, बिना किसी औपचारिक निमंत्रण के। यह आधुनिक युग के लिए प्रबंधन और योजना का एक बेहतरीन उदाहरण बन गया है। पूरे विश्व में इतने बड़े पैमाने पर कोई अन्य आयोजन नहीं होता, जहां लोग केवल आस्था के बल पर स्वयं एकत्रित होते हैं।

इस विराट आयोजन ने भारत की युवा पीढ़ी को भी अपनी संस्कृति से गहराई से जोड़ दिया। बड़ी संख्या में युवा महाकुंभ में पहुंचे, जिससे यह स्पष्ट हुआ कि नई पीढ़ी अपने संस्कारों और विरासत को संभालने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है।

आस्था और राष्ट्रीय चेतना का महायज्ञ

प्रयागराज में उमड़े जनसैलाब ने एक नया रिकॉर्ड स्थापित किया। लेकिन जो वहां नहीं पहुंच सके, उन्होंने भी इस आयोजन को अपने घरों और गांवों में भावनात्मक रूप से जिया। श्रद्धालुओं द्वारा अपने साथ ले जाई गई त्रिवेणी का पवित्र जल, पूरे देश में इस आयोजन की पवित्रता और प्रभाव को पहुंचा रहा है।

144 वर्षों बाद एक ऐतिहासिक मोड़

महाकुंभ की परंपरा भारत की राष्ट्रीय चेतना को सदियों से बल देती आई है। हर पूर्णकुंभ में ऋषि-मुनि और विद्वान समाज की दिशा तय करने के लिए विचार-मंथन करते हैं। 144 वर्षों के बाद पड़े इस महाकुंभ ने भी एक नए भारत के निर्माण का संदेश दिया है—विकसित, आत्मनिर्भर और जागरूक भारत का।

महाकुंभ केवल एक धार्मिक पर्व नहीं था, यह भारत के नवजागरण का प्रतीक बन गया है। यह स्पष्ट संकेत है कि भारत अपनी विरासत पर गर्व करते हुए, आत्मविश्वास के साथ अपने उज्जवल भविष्य की ओर बढ़ रहा है।

फोटो व्हाट्सएप्प AI से लिया गया है
फोटो व्हाट्सएप्प AI से लिया गया है

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