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“खरगोश और कछुए की दौड़”

एक बार की बात है, एक जंगल में एक तेज़ दौड़ने वाला खरगोश और एक धीमा कछुआ रहते थे। खरगोश को अपनी तेज़ दौड़ पर घमंड था और वह हमेशा दूसरों को चिढ़ाता रहता था। एक दिन, उसने कछुए को चुनौती दी, “तुम तो बहुत धीमे हो, क्या तुम मुझसे दौड़ने की हिम्मत रखते हो?”

कछुआ बहुत शांत और समझदार था। उसने खरगोश की चुनौती स्वीकार कर ली और कहा, “ठीक है, हम दौड़ लगाते हैं।”

दौड़ की शुरुआत हुई। खरगोश अपनी तेज़ दौड़ से कछुए को बहुत पीछे छोड़ चुका था। वह इतना आत्मविश्वासी था कि उसने सोचा, “कछुआ तो बहुत धीरे-धीरे चल रहा है, मैं थोड़ी देर आराम कर सकता हूँ।” फिर खरगोश एक पेड़ के नीचे सोने चला गया।

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इस बीच, कछुआ लगातार बिना रुके दौड़ता रहा। वह धीरे-धीरे लेकिन निरंतर दौड़ता गया। खरगोश को सोते हुए देखकर कछुआ और तेज़ी से बढ़ता गया। अंत में, कछुआ लक्ष्य तक पहुँच गया, जबकि खरगोश सोते हुए जागा और देखा कि कछुआ पहले ही जीत चुका है।

कहानी का संदेश था – “धीरे-धीरे लेकिन निरंतर प्रयास करने से बड़ी जीत हासिल होती है, जबकि घमंड और आलस्य से नुकसान होता है।”

इस कहानी से हमें यह सिखने को मिलता है कि हर कोई अपनी गति से बढ़ सकता है, लेकिन निरंतर प्रयास और आत्मविश्वास से सफलता मिलती है।

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